तनधारी जग में अवधु.....
दोहा: कोई तन दुखी कोई मन दुखी,
कोई धन बिन फिरे रे उदास ।
थोड़ा-थोड़ा सब दुखी,
सुखी राम का दास ॥
स्थाई: तनधारी जग में अवधु,
कोई नहीं सुखिया रे ।
जनम लियोड़ा सब,
दुखिया है रे लोक ॥
ब्रह्मा भी दुखिया अवधु,
विष्णु भी दुखियारे ।
दुखिया दशों, अवतारा है रे लोक ॥
धरती भी दुखिया अवधु,
अम्बर भी दुखिया रे ।
दुखिया पवना पाणी है रे लोक ॥
राजा भी दुखिया अवधु,
प्रजा भी दुखिया रे ।
दुखिया सकल संसारा है रे लोक ।।
शरणे मच्छेन्दर जती,
गोरख बोले रे ।
रामजी ने भजे वो ही,
सुखिया है रे लोक ॥
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