दोहा : गुरु देवन के देव हो, आप बड़े जगदीश।
बेडी भवजल बिच में, गुरु
तारो विस्वाविश।।
स्थाई : गुरु बिन घोर अँधेरा संतो,
गुरु
बिन घोर अँधेरा जी। बिना दीपक मंदरियो
सुनो, अब नहीं वास्तु का वेरा हो जी।।
जब तक कन्या रेवे
कवारी, नहीं पुरुष का वेरा जी।
आठो पोहर आलस में
खेले, अब खेले खेल घनेरा हो जी ।।
मिर्गे री नाभि
बसे किस्तूरी, नहीं मिर्गे को वेरा जी।
रनी वनी में फिरे भटकतो, अब
सूंघे घास घणेरा हो जी।।
जब तक आग रेवे पत्थर में, नहीं
पत्थर को वेरा जी।
चकमक छोटा लागे शबद री, अब
फेके आग चोपेरा हो जी।।
रामानंद मिलिया गुरु पूरा, दिया
शबद तत्सारा जी।
कहत
कबीर सुनो भाई संतो, अब मिट गया भरम अँधेरा हो जी।।स्थाई : दर्शन
देता जाइजो जी, सतगुरु मिलता जाइजो जी।
म्हारे पिवरिया री बातां थोड़ी म्हने,केता
जाइजो जी।।
सोने जेडी पीळी पड़ गई, दुनिया
बतावे रोग।
रोग दोग म्हारे काई नी लागे, गुरु
मिलण रो जोग।।
म्हारे
भाभे म्हने बींद बतायो,पकड़ बताई बाँह। कांई
कहो में कांई न समझू,जिव भजन रे माय।।
म्हारे देश रा लोग भला है, पेहरे
कंठी माला।
म्हारा लागे वे भाई - भतीजा, राणाजी
रा साला।।
सासरियो संसार छोडियो, पीव
ही लागे प्यारो।
बाई मीरा ने गिरधर मिलिया,चरण
कमल लिपटायो।।
दर्शन देता जाइजो जी, सतगुरु मिलता जाइजो जी।म्हारे पिवरिया री बातां थोड़ी म्हने,केता जाइजो जी।।
दोहा : सतगुरु मेरी आत्मा, मै संतन की देह।
रोम रोम में रम रया, ज्यू
बादल में मेह।।
स्थाई : वारि जाऊ रे,
बलिहारी जाऊ रे।
म्हारे सतगुरु आँगन
आया, में वारि जाऊ रे।।
सतगुरु आँगन आया,में
गंगा गोमती नहाया।
म्हारी निर्मल हो गयी
काया,में वारि जाऊ रे।।
सतगुरु दर्शन दिना, म्हारा
भाग उदय कर दिना।
करम भरम सब छीना रे, में
वारि जाऊ रे ।।
सखियाँ मिलकर आवो,केसर रा तिलक लगावो।
गुरुदेव
ने बधावो रे,में वारि जाऊ रे ।।
सत्संग बण गई भारी, थे गावो मंगलचारी।
म्हारे
खुली हिरदे री बारी रे, में वारि जाऊ रे।।
दास
नारायण जस गावे,चरणा में शीश झुकावे।
म्हारो
बेड़ो पार लगावो रे,में वारि जाऊ रे ।।
वारि जाऊ रे, बलिहारी जाऊ रे। म्हारे सतगुरु आँगन आया, में वारि जाऊ रे।।
और लाया वस्तु अमोल। सौदागर साँचा मिले, वे सिर साठे तोल।।
स्थाई : जुग में गुरु समान नहीं दाता। सार शबद सतगुरु जी रा मानो, सुन में जाय समाता रे। जुग में गुरु समान नहीं दाता।।
वस्तु अमोलक दी म्हारा सतगुरु,भली सुनाई बांता। काम क्रोध ने कैद कर राखो,मार लोभ ने लाता,जुग में गुरु समान नहीं दाता।।
काल करे सो आज कर ले, फिर दिन आवे नहीं हाथा। चौरासी में जाय पड़ेला, भोगेला दिन राता, जुग में गुरु समान नहीं दाता।।
शबद पुकारि पुकारि केवे है,कर संतन का साथा। सेवा वंदना कर सतगुरु री,काल नमावे माथा,जुग में गुरु समान नहीं दाता।।
कहत कबीर सुनो धार्मिदासा, मान वचन हम कहता। पर्दा खोल मिलो सतगुरु से, चलो हमारे साथा, जुग में गुरु समान नहीं दाता।।
जुग में गुरु समान नहीं दाता। सार शबद सतगुरु जी रा मानो,सुन में जाय समाता रे। जुग में गुरु समान नहीं दाता।।
मारा सतगुरु लियो रे उबारी ,गुरासा ने बलिहारी,अरे वारि ओ गुरुदेव आप ने बलिहारी,अरे वारि ओ गुरुदेव आप ने बलिहारी,
आप नी वेता जगत में तो , कुण करतो मारी सहाई, भोग ता दुःख भारी हा रे भोग ता दुःख भारी हो जी वारि ओ गुरुदेव आपने बलिहारी अरे वारि ओ गुरुदेव आप ने बलिहारी।।
असंग जुगारो सुतो मारो हंसलो,सतगुरु दियो वो जगाय,शब्द री सिसकारी,हां रे शब्द री सिसकारी,अरे वारि ओ गुरुदेव आप ने बलिहारी।।
जम सु जगडा जितिया रे, इन भवसागरिया माय, भयो आनंद भारी , हां रे भयो आनंद भारी हो...ओ... जी , अरे वारि ओ गुरुदाता आप ने बलिहारी।।
फूलगिरि जी री विनती वो,एक दुर्बल करे हे पुकार,अरज अब सुन मारी,हां रे अरज अब सुन मारीहो...ओ... जी ,अरे वारि ओ गुरुदेव आप ने बलिहारी।।
अरे वारि ओ गुरुदेव आप ने बलिहारी, भवजल डूबत तरियो जी , मारा सतगुरु लियो रे उबारी , गुरासा ने बलिहारी, आप नी वेता जगत में तो , कुण करतो मारी सहाई, आप ने बलिहारी अरे वारि ओ गुरुदेव आप ने बलिहारी।।
दोहा : गुरु देवन के देव हो, आप बड़े जगदीश। बेडी भवजल बिच में, गुरु तारो विस्वाविश।।
स्थाई : भरोसे थारे चाले ओ ,सतगुरु मारी नाव। सतगुरु म्हारी नाव बापजी ,धिनगुरु म्हारी नाव।।
नहीं हे मारे कुटुम कबीलो , नहीं म्हारे परिवार। आप बिना दूजो नहीं दिखे ,जग में पालनहार।।
भवसागर ऊंडो घणो ने ,तिरु न उतरू पार। निगे करू तो निजर नी आवे, भवसागर रे धार ।।
सतगुरु रूपी जहाज बणा लो , इण विध उतरो पार। सुरत जाजडी ज्ञान बांसलो ,खेवट सिरजनहार।।
कहे कबीर सुणो भाई साधो !बह जातो मजधार। रामानंद मिल्या गुरु पूरा ,बेडा कर दिया पार।।
भरोसे थारे चाले ओ ,सतगुरु मारी नाव। सतगुरु म्हारी नाव बापजी ,धिनगुरु म्हारी नाव।।
दोहा : संत हमारे सिरधणी, में संतन की देह। रोम-रोम में रम रया, प्रभु ज्यू बादल में मेह।।
स्थाई : एकणवार आईजो, सतगुरु वारम्वार आइजो। धिनगुरूसा म्हारे देश में ओ जी।।
सतगुरु म्हारा फुलड़ा रे ,धिन गुरु म्हारा फुलड़ा। कोई फुलड़ा मोयली वासना ओ जी।।
सतगुरु म्हारी गंगा रे , धिन गुरु म्हारी गंगा। कोई गंगा मोयली गोमती ओ जी।।
सतगुरु म्हारी माला रे ,दाता म्हारी माला। कोई माला मोयली मुंगिया ओ जी।।
सतगुरु म्हारा देवल रे ,धिन गुरु म्हारा देवल। कोई देवल मोयला देवता ओ जी।।
सतगुरु म्हारा बादल रे ,धिन गुरु म्हारा बादल। कोई बादल मोयली बिजली ओ जी।।
सतगुरु रो परताप ओ, म्हारे धिन गुरु रो परताप। कोई जीवणजोशी बोलिया ओ जी।। एकणवार आईजो, सतगुरु वारम्वार आइजो। धिनगुरूसा म्हारे देश में ओ जी।।
बेडी भवजल बिच में, गुरु
तारो विस्वाविश।।
स्थाई : गुरु बिन घोर अँधेरा संतो,
गुरु
बिन घोर अँधेरा जी।
बिना दीपक मंदरियो
सुनो,
अब नहीं वास्तु का वेरा हो जी।।
जब तक कन्या रेवे
कवारी,
नहीं पुरुष का वेरा जी।
आठो पोहर आलस में
खेले,
अब खेले खेल घनेरा हो जी ।।
मिर्गे री नाभि
बसे किस्तूरी,
नहीं मिर्गे को वेरा जी।
रनी वनी में फिरे भटकतो, अब
सूंघे घास घणेरा हो जी।।
जब तक आग रेवे पत्थर में,
नहीं
पत्थर को वेरा जी।
चकमक छोटा लागे शबद री, अब
फेके आग चोपेरा हो जी।।
रामानंद मिलिया गुरु पूरा,
दिया
शबद तत्सारा जी।
कहत
कबीर सुनो भाई संतो,
अब मिट गया भरम अँधेरा हो जी।।
स्थाई : दर्शन
देता जाइजो जी,
सतगुरु मिलता जाइजो जी।
म्हारे पिवरिया री बातां थोड़ी म्हने,
केता
जाइजो जी।।
सोने जेडी पीळी पड़ गई,
दुनिया
बतावे रोग।
रोग दोग म्हारे काई नी लागे,
गुरु
मिलण रो जोग।।
म्हारे
भाभे म्हने बींद बतायो,
पकड़ बताई बाँह।
कांई
कहो में कांई न समझू,
जिव भजन रे माय।।
म्हारा लागे वे भाई - भतीजा,
राणाजी
रा साला।।
सासरियो संसार छोडियो,
पीव
ही लागे प्यारो।
बाई मीरा ने गिरधर मिलिया,
चरण
कमल लिपटायो।।
म्हारे पिवरिया री बातां थोड़ी म्हने,
केता जाइजो जी।।
दोहा : सतगुरु मेरी आत्मा,
मै संतन की देह।
रोम रोम में रम रया,
ज्यू
बादल में मेह।।
स्थाई : वारि जाऊ रे,
बलिहारी जाऊ रे।
म्हारे सतगुरु आँगन
आया,
में वारि जाऊ रे।।
सतगुरु आँगन आया,
में
गंगा गोमती नहाया।
म्हारी निर्मल हो गयी
काया,
में वारि जाऊ रे।।
सतगुरु दर्शन दिना,
म्हारा
भाग उदय कर दिना।
करम भरम सब छीना रे,
में
वारि जाऊ रे ।।
सखियाँ मिलकर आवो,
केसर रा तिलक लगावो।
गुरुदेव
ने बधावो रे,
में वारि जाऊ रे ।।
सत्संग बण गई भारी,
थे गावो मंगलचारी।
म्हारे
खुली हिरदे री बारी रे,
में वारि जाऊ रे।।
दास
नारायण जस गावे,
चरणा में शीश झुकावे।
म्हारो
बेड़ो पार लगावो रे,
में वारि जाऊ रे ।।
वारि जाऊ रे,
बलिहारी जाऊ रे।
म्हारे सतगुरु आँगन आया,
में वारि जाऊ रे।।
और लाया वस्तु अमोल।
सौदागर साँचा मिले,
वे सिर साठे तोल।।
स्थाई : जुग में गुरु समान नहीं दाता।
सार शबद सतगुरु जी रा मानो,
सुन में जाय समाता रे।
जुग में गुरु समान नहीं दाता।।
वस्तु अमोलक दी म्हारा सतगुरु,
भली सुनाई बांता।
काम क्रोध ने कैद कर राखो,
मार लोभ ने लाता,
जुग में गुरु समान नहीं दाता।।
काल करे सो आज कर ले,
फिर दिन आवे नहीं हाथा।
चौरासी में जाय पड़ेला,
भोगेला दिन राता,
जुग में गुरु समान नहीं दाता।।
शबद पुकारि पुकारि केवे है,
कर संतन का साथा।
सेवा वंदना कर सतगुरु री,
काल नमावे माथा,
जुग में गुरु समान नहीं दाता।।
कहत कबीर सुनो धार्मिदासा,
मान वचन हम कहता।
पर्दा खोल मिलो सतगुरु से,
चलो हमारे साथा,
जुग में गुरु समान नहीं दाता।।
जुग में गुरु समान नहीं दाता।
सार शबद सतगुरु जी रा मानो,
सुन में जाय समाता रे।
जुग में गुरु समान नहीं दाता।।
मारा सतगुरु लियो रे उबारी ,
गुरासा ने बलिहारी,
अरे वारि ओ गुरुदेव आप ने बलिहारी,
अरे वारि ओ गुरुदेव आप ने बलिहारी,
आप नी वेता जगत में तो ,
कुण करतो मारी सहाई,
भोग ता दुःख भारी
हा रे भोग ता दुःख भारी हो जी
वारि ओ गुरुदेव आपने बलिहारी
अरे वारि ओ गुरुदेव आप ने बलिहारी।।
असंग जुगारो सुतो मारो हंसलो,
सतगुरु दियो वो जगाय,
शब्द री सिसकारी,
हां रे शब्द री सिसकारी,
अरे वारि ओ गुरुदेव आप ने बलिहारी।।
जम सु जगडा जितिया रे,
इन भवसागरिया माय,
भयो आनंद भारी ,
हां रे भयो आनंद भारी हो...ओ... जी ,
अरे वारि ओ गुरुदाता आप ने बलिहारी।।
फूलगिरि जी री विनती वो,
एक दुर्बल करे हे पुकार,
अरज अब सुन मारी,
हां रे अरज अब सुन मारीहो...ओ... जी ,
अरे वारि ओ गुरुदेव आप ने बलिहारी।।
अरे वारि ओ गुरुदेव आप ने बलिहारी,
भवजल डूबत तरियो जी ,
मारा सतगुरु लियो रे उबारी ,
गुरासा ने बलिहारी,
आप नी वेता जगत में तो ,
कुण करतो मारी सहाई,
आप ने बलिहारी
अरे वारि ओ गुरुदेव आप ने बलिहारी।।
दोहा : गुरु देवन के देव हो, आप बड़े जगदीश।
बेडी भवजल बिच में, गुरु तारो विस्वाविश।।
स्थाई : भरोसे थारे चाले ओ ,सतगुरु मारी नाव।
सतगुरु म्हारी नाव बापजी ,धिनगुरु म्हारी नाव।।
नहीं हे मारे कुटुम कबीलो , नहीं म्हारे परिवार।
आप बिना दूजो नहीं दिखे ,जग में पालनहार।।
भवसागर ऊंडो घणो ने ,तिरु न उतरू पार।
निगे करू तो निजर नी आवे, भवसागर रे धार ।।
सतगुरु रूपी जहाज बणा लो , इण विध उतरो पार।
सुरत जाजडी ज्ञान बांसलो ,खेवट सिरजनहार।।
कहे कबीर सुणो भाई साधो !बह जातो मजधार।
रामानंद मिल्या गुरु पूरा ,बेडा कर दिया पार।।
भरोसे थारे चाले ओ ,सतगुरु मारी नाव।
सतगुरु म्हारी नाव बापजी ,धिनगुरु म्हारी नाव।।
दोहा : संत हमारे सिरधणी, में संतन की देह।
रोम-रोम में रम रया, प्रभु ज्यू बादल में मेह।।
स्थाई : एकणवार आईजो, सतगुरु वारम्वार आइजो।
धिनगुरूसा म्हारे देश में ओ जी।।
सतगुरु म्हारा फुलड़ा रे ,धिन गुरु म्हारा फुलड़ा।
कोई फुलड़ा मोयली वासना ओ जी।।
सतगुरु म्हारी गंगा रे , धिन गुरु म्हारी गंगा।
कोई गंगा मोयली गोमती ओ जी।।
सतगुरु म्हारी माला रे ,दाता म्हारी माला।
कोई माला मोयली मुंगिया ओ जी।।
सतगुरु म्हारा देवल रे ,धिन गुरु म्हारा देवल।
कोई देवल मोयला देवता ओ जी।।
सतगुरु म्हारा बादल रे ,धिन गुरु म्हारा बादल।
कोई बादल मोयली बिजली ओ जी।।
सतगुरु रो परताप ओ, म्हारे धिन गुरु रो परताप।
कोई जीवणजोशी बोलिया ओ जी।।
एकणवार आईजो, सतगुरु वारम्वार आइजो।
धिनगुरूसा म्हारे देश में ओ जी।।
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