Hirani Ubhi Araj Kare Bhajan हिरणी उभी अरज करे

हिरणी उभी अरज करे (धुन:- दलाली हीरा लालन की )

स्थाई:- ओ म्हारे पियाजी रा प्राण बचाय, 
हिरणी हरी ने अरज करे। 
ओ म्हारे समदर में डूबी जावे जहाज, 
हिरणी उभी अरज करे।।

बाबरिया ने बाबर बांधी, 
चौसठ बंध लगाय। 
हिरण्यां कूद जंगल में ठाड़ी, 
मिरगा रो फँस गयो पाँव।।
हिरणी उभी अरज करे।।

कहे मिरगलो सुण ए मिरगली, 
तू गाफल मत होय। 
तू तो कूद जंगल में रळ जा, 
हरी करे सोई होय।।
हिरणी उभी अरज करे।।

तीन पाँव पर खड़ी मिरगली, 
हरी सूं हेत लगाय। 
हरी रो तो सिंहासन डोल्यो, 
बावरिया ने विष खाय।।
हिरणी उभी अरज करे।।

टूटी डोर बंध हुआ ढीला, 
मिरगा रो खुलियो पाँव। 
कहे कबीर सुणो भाई साधो, 
जोड़ी मिलाई भगवान्। 
हिरणी उभी अरज करे।।
               ⚝⚝⚝⚝⚝

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