मनवा भूल गयो ईश्वर ने....
स्थाई: मनवा भूल गयो ईश्वर ने,
अब तेरो कौन संगाती रे ॥
नर तू भूल्यो उस मालिक ने, कर कर चाली रे ।
पाप की पोट धरी सिर ऊपर, वजन लखासी रे ॥
इतना पाप कर्या नर हद से, क्या फळ पासी रे ।
ईश्वर आगे क्या तलासी, लेखो चाहिसी रे ॥
इस देही का गर्व ना करना, एक दिन जासी रे ।
करना हो सो कर ले बन्दा, फिर पछतासी रे ॥
सुखीराम जी नित उठ गावे, भजो बृज वासी रे ।
वो ही प्रभुजी पार उतारे, हरि अविनाशी रे ॥
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