लोक लाज दीन्ही खोय फकीरी.....
स्थाई:- लोक लाज दीन्ही खोय फकीरी, निर्भय पड़ा निर्मोह।।
अम्बर ओढ़ण भूमि पतरणा, बीच मसाणा खोय।
भूत प्रेत री शंका नहीं ज्यां रे, जीवत मुरदा होय,
फकीरी, निर्भय पड़ा निर्मोह।।
दीखत मुरदा है वो चेतन, जाण सके नी कोय।
वां री गति तो वो ही जाणे, नहीं हँसे नहीं रोय,
फकीरी, निर्भय पड़ा निर्मोह।।
सम द्रष्टि से दीदार देखिया, अगम अगोचर जोय।
शंका द्धेष व्यापे नहीं जांके, निराधार निर्मोय,
फकीरी, निर्भय पड़ा निर्मोह।।
आवत जावत सांस झिकोला, हरदम हिरदा धोय।
कूड़ कपट रा दागा नहीं लागे, मन ज्यां रा उज्जवल होय,
फकीरी, निर्भय पड़ा निर्मोह।।
गोपेश्वर अंजनेश्वर शरणे, सुरत सोहंग में पोय।
पार ब्रह्म सतगुरु दर्शाया, जनम मरण नहीं होय,
फकीरी, निर्भय पड़ा निर्मोह।।
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