मंगल भवन अंमगल हारी....
स्थाई:- मंगल भवन अंमगल हारी, द्रवहु सुदशरथ अजिर बिहारी।।
राम सियाराम सियाराम जय जय राम।।
रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाय पर वचन न जाई।
राम सियाराम सियाराम जय जय राम।।
हरी अनन्त हरी कथा अननता, कहहिं सुनहिं बहु विधि सब संता।
राम सियाराम सियाराम जय जय राम।।
कलियुग केवल नाम आधारा, सुमर-सुमर भव उतराहुँ पारा।
राम सियाराम सियाराम जय जय राम।।
राम ही केवल प्रेम पियारा, जान लिया जग जानन हारा।
राम सियाराम सियाराम जय जय राम।।
धीरज धर्म मित्र अरु नारी, आपत काल परखिये चारी।।
राम सियाराम सियाराम जय जय राम।।
जां की रही भावना जैसी, प्रभु मुरत देखी तीन वैसी।
राम सियाराम सियाराम जय जय राम।।
जां पर किरपा राम की होई, तां पर किरपा करे हर कोई।
राम सियाराम सियाराम जय जय राम।।
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