दोहा:
संत मिलन
को चालिये,
तज
माया अभिमान।
ज्यूं-ज्यूं पग
आगे धरे,
कोटि
यज्ञ समान
।।
स्थाई:
अवसर आयो
रे तिरण
रो मौको
आयो रे
।
भाई-भाई ले
सतगुरु की
शरण,
तिरण
को मौको
आयो रे
॥
शुभ
कर्मों से
नरतन पायो,
अब
तक सोच
समझ नहीं
लायो ।
बणकर
आयो बींद
नींद में,
कैसे
सोयो रे
॥
जो
तुम अपनी
मुक्ति चावो,
दश
दोषों को
दूर हटावो
।
पाणी
पेली पाळ
बांध ले,
गाफिल
क्यूं सोयो
रे ॥
चोरी
जारी और
जिव हत्या,
निन्दा
बतियाँ गाळी
बखियां ।
हरष
शोक अभिमान
झूठ,
दश
दोष बतायो
रे ॥
राजा
रावण और
शिशुपाला,
जरासन्ध
बाणासुर मारा
।
बड़ा-बड़ा भूप
हुआ धरण
पर,
पतो
नी पायो
रे ॥
ये दिन
सारा बीत
जावेला,
फिर
चौरासी में
मिलणा वेला
।
झूठ
कपट रो
छोड़ मारग
ओ,
सीधो
बतायो रे
॥
रामानन्द
गुरु साँची
केवे,
जाग
जीव गुरु
हेला देवे
।
कहे
कबीर विचार
मिनख तन,
मुश्किल
पायो रे
॥
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