ओ तो जग झूठो है संसार
दोहा:- कबीरा सोया क्या करे, उठ ने भज भगवान।
जम जब घर ले जायेँगे, पड़ी रहेगी म्यान।।
स्थाई:- बन्दा थारी नींदड़ली ने निवार,
ओ तो जग झूठो है संसार।
उगे सो आथमे जी , फूले सो कुम्हलाय।
चुणिया देवल ढह पड़े जी, जनमे सो मर जाय,
ओ तो जग झूठो है संसार।।
सोने रा गढ़ कांगरा जी, रुपे रा घर बार।
रति एक सोनो नहीं मिल्या रे, रावण मरती वार,
ओ तो जग झूठो है संसार।।
हाथां पर्वत तोलता जी, ज्यां रो भूमि ना खिंवती भार।
वे माणस माटी मिल्या रे, ज्यां रा भांडा घड़े रे कुम्हार,
ओ तो जग झूठो है संसार।।
सेर-सेर सोनो पहरती जी, मोत्यां मरती भार।
घडियक झोलो वाजियो हो गई, घर घर री पणियार,
ओ तो जग झूठो है संसार।।
पाळी न चाले पांवडो जी, चाली कोस हजार।
काशी नगर रे चोंवटे जी, अरे हरिचन्द बेची नार,
ओ तो जग झूठो है संसार।।
जासूँ हँस हँस बोलता, दिन में सौ सौ बार।
वे माणस किण दिश गया, सुरता करो विचार,
ओ तो जग झूठो है संसार।।
दो अक्षर है प्रेम रा जी, राम नाम तत्सार।
काजी मेमद सा यूं भणे जी, अरे केवल नाम आधार,
ओ तो जग झूठो है संसार।।
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