कालो के महाकाल केवावो......
स्थाई : कालो के महाकाल केवावो, देवो रा महादेवा रे।
माँय कूलों माँय जाल
घणेरो,
घर रो न्याव अब कुण करे हो जी।।
कार्तिक म्हारो बेटो मोटको, मोर री सवारी करे।
कार्तिक जद आवे रे कैलाश पर, जिण
सूं म्हारो नाग डरे हो जी।।
गणपत म्हारो बेटो लाड़को , दुनिया प्रथम पूजा करे।
लम्बी पूंछ रो लावे ऊंदरो, जटा
कुतर नुकसाण करे हो जी।।
म्हारे सवारी है नांदिये री, हरियो-हरियो घास चरे।
घर की शक्ति बैठे सिंह पर, जिण
सूं म्हारो नांदियो डरे हो जी।।
मरिये पशु री लावे चामड़ी, जिण सूं म्हारो सिणगार करे।
बिच्छू झाल ने म्हने पंपोळै, बोलू
तो म्हारे मार पड़े हो जी।।
असल दालिदार नाम हमारो, फूंक दियां से छाट पड़े।
बाप को पाणी कोई नहीं पीवे, बहन
मारी घर-घर फिरे हो जी।।
ग्यारह मुंडा है बाप बेटे रे, बारहवो हाथी पेट भरे।
घर को धणी ओ बैठो धूणी पर, काम
रती रो नहीं करे हो जी।।
सुख दुःख तो आवे और जावे, धूप छाया वाला खेल करे।
हरी करे सो खरी ओंकारा, गुरु
चेतन बेडा पार करे हो जी।।
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