चालो गुरासां रे देश में म्हारी हेली....
स्थाई:- चालो गुरासां रे देश में म्हारी हेली, चरण कमल चित धार।।
उलझ रही फंद रास में म्हारी हेली, लागे कर्मा रा जाळ।
नाम बिना छूटे नहीं म्हारी हेली, राखो भजन री सार।।
काय कागज़ की पूतली म्हारी हेली, छांट लगे गळ जाय।
पवन डोरा में पोय ले म्हारी हेली, दिन दो नाच नचाय।।
अधर मेहलां में खेलणों म्हारी हेली, अड़ा रे उड़द रे बीच।
पियो प्याला निज नाम का म्हारी हेली, कट जाए कर्मा का कीच।।
अमर बींद को चुड़लो म्हारी हेली, पहरे सुहागण नार।
सतगुरु री दासी बण जाऊँ म्हारी हेली, कर दे भव सिन्धु पार।।
धिन सुखराम गुरु भेटिया म्हारी हेली, दीनी तोय समझाय।
ईसरदास घट खोजिया म्हारी हेली, लिया आप में थाय।।
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