नर नारायण री देह बणाई.....
स्थाई:- नर नारायण री देह बणाई, नुगरा कोई मत रेवणा जी।
नुगरा मिनख तो पशु बराबर, उण रा संग नहीं करणा जी।
राम रे भजन में हाल मेरा हंसा, इण जुग में जिवणा थोड़ा रे।।
अढारे वरण री गायां दुरावूं , एक बरतन में लेवणा जी।
मथे-मथे ने माखण लेणा, बरतन उजला रखणा जी।।
आगलो आवे अगन सरूपी, जल सरूपी रेवणा जी।
जाणू रे आगे अजाणू रेणा, सुण-सुण वचन केवणा जी।।
काशी नगर में रहता कबीरसा, वे कोरा धागा वणता रे।
सारा सांसरिया में धरम चलायो, वे निर्गुण माला फेरता जी।।
इण संसारिया में आवणो जावणो, वैर किसे मत रखणा जी।
केवे कमाली कबीरसा री लड़की, फेर जनम नहीं लेवणा जी।।
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