देशड़लो रंग रूड़ो
दोहा:- मीरां वन री कोयली, राणो वन रो ठूंठ।
समझायो समज्यो नहीं, ले जाती वेकुण्ठ।।
स्थाई:- देशड़लो रंग रूड़ो।
राणाजी थारो देशड़लो रंग रूड़ो, राणा रे।
कोणी पेरुली थारो चूड़ो रे राणाजी थारो देशड़लो रंग रूड़ो।।
थारे देशां में राणा संत नहीं रे।
लोग बसे सब कूड़ो, नहीं भावे थारो देशड़लो रंग रूड़ो।।
काजल टीकी राणा, म्हें सब कुछ छोड्या।
छोड्यो माथे वालो जूड़ो रे, राणाजी थारो देशड़लो रंग रूड़ो।।
हार सिंगार राणा, म्हें सब कुछ त्याज्ञा।
त्याज्ञो बयां वालो चूड़ो रे, राणाजी थारो देशड़लो रंग रूड़ो।।
माखण मिश्री राणा, सब कुछ छोड्या।
छोड्यो शक्कर ने गुडों रे, राणाजी थारो देशड़लो रंग रूड़ो।।
तन की आस राणा, म्हेँ कबहुं न कीनी।
ज्यूं रण माँहि शूरो रे, राणाजी थारो देशड़लो रंग रूड़ो।।
बाई मीरां केवे प्रभु, गिरधर नागर।
वर पायो मैं पूरो, रे राणाजी थारो देशड़लो रंग रूड़ो।।
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