काया कोठड़ी में रंग लागो
दोहा:- मिनख जमारो दुर्लभ है, मिले न दूजी वार।
फळ पड़े धरणी पर, वो पाछो लगे न डार।।
स्थाई:- म्हारा हंसला रे चढ़जा शिखर गढ़,
काया कोठड़ी में रंग लागो।
म्हारा पवना रे चढ़जा शिखर गढ़,
काया कोठड़ी में रंग लागो।
रंग लागो रे भायां भय भागो,
रंग लागो रे भायां भय भागो।।
राम नाम रा पिया रे प्याला,
पीवत-पीवत म्हारो मन लागो।
हाक मार बाबो चढ़ियो शिखर में.
जद काया में शिव जागो।।
इंगला रे आगे पिंगला रे उभी,
सुकमण जोय म्हारो मन जाग्यो।
त्रिवेणी रा रंग महल में,
अड़ब झरोखे म्हारो भ्रम भागो।।
ऊँची मेढ़ी जी रे अमी रे ढळत है,
ढळत-ढळत म्हारो पिव जागो।
सुरत नुरत म्हारी आई रे सरोदे,
जद मालिक घर वाते लागे।।
सोहन शिखर माँय सेज पिया री,
वणती रे हमें म्हारो मन लागो।
मच्छेन्द्र प्रताप जति गोरख बोले,
भजन करे ज्यां रो भय भागो।।
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