गुरु कितना दे उपदेश, मूरख थारे
स्थाई:- गुरु कितना दे उपदेश थारे, एक नहीं लागे।
एक नहीं लागे रे मूरख थारे, एक नहीं लागे।
गुरु कितना दे उपदेश मूरख थारे, एक नहीं लागे।।
सूखा लकड़ा ने घणो-घणो पियो नहीं, पान फूल लागे।
इण कागला ने घणो बणायो, तरहा-तरहा बोले।।
इण कायर रे बांध्यो सेंवरो, करियो फौज आगे।
भाला री आ अणि देखने, दूरो-दूरो भागे।।
इण नुगरा ने ज्ञान बतायो नहीं, ज्ञान ध्यान लागे।
अमल ने तो घणो घोलियो, तो भी जहर आवे।।
रामानन्द गुरु पूरा मिलिया, अकरा भरम भागे।
कहे कबीर सुणो भाई साधु, मेरा देश आगे।।
गुरु कितना दे उपदेश थारे, एक नहीं लागे।
एक नहीं लागे रे मूरख थारे, एक नहीं लागे।
गुरु कितना दे उपदेश मूरख थारे, एक नहीं लागे।।
⚝⚝⚝⚝⚝
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