हरी ने हिये न धारा रे.....
स्थाई:- हरी ने हिये न धारा रे, प्रभु ने हिये न धारा रे।
वो नर पशु समान ज्यां रा, धूड़ जमारा रे।।
पाँव से चल्या नहीं गुरु पासा -2
उण नर केरा पाँव कहिजे, देवल थम्ब जैसा।।
हाथ से फेरी नहीं माला- 2
उण नर केरा हाथ कहिजे, वृक्षन रा डाला।।
नैण से निरख्या नहीं नन्दा -2
उण नर केरा नैण कहिजे, मोर पंख चन्दा।।
कान से सुणी नहीं कथा -2
उण नर केरा कान कहिजे, कीड़ी दर जेड़ा।।
हरि का भजन नहीं करता,राम का भजन नहीं करता।
रामलाल यूं कहे जगत में, बंदर ज्यूं फिरता।।
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