Sukarat Ful Gulab Ro Mhari Heli Bhajan Lyrics सुकरत फूल गुलाब रो म्हारी हेली

सुकरत फूल गुलाब रो म्हारी हेली.... 

स्थाई:- सुकरत फूल गुलाब रो म्हारी हेली, सब घट रयो रे समाय। 
कहो रे संतो कैसे पावसां म्हारी हेली, गुरु बिन लखियो न जाय।।

तीन तिरवेणी रे ऊपरे म्हारी हेली, फलियो है सोहम फूल। 
वठे धरम रो है बेसणो म्हारी हेली, निज अंतर गया भूल।।

चार योजन रे ऊपरे म्हारी हेली, पुरुष वेदेही भरपूर। 
जुगत मुगत उण देश में म्हारी हेली, अनहद बाजे तूर।।

अमर कोठे खम्भ ही खड़ी म्हारी हेली, उभी गुरां रे दरबार। 
झिड़की खोली जद जोवियो म्हारी हेली, राह अगम घर जाय।

ओ ही हंसो उण देश रो म्हारी हेली, नहीं आवे नहीं जाय। 
केवे कबीरसा धर्मीदास ने म्हारी हेली, निज गुण देऊँ लखाय।।
                                       ✽✽✽✽✽
 

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