उण घर जाइजे वैरण नींद......
दोहा:- दिन रा बातां बांचणियाँ, तो रातूं लेव नींद।
राम भजन ओ कैसे सुणे, ओ दोय बहू रो बींद।
दोय बहू रो बींद, पकड़ बैठी है काठी।
आगे पूछसी जवाब, जद ए फिरसी आडी।।
जाग रे जाग बन्दा, क्यूं गाफिल में सौ रहा।
देख थूं उठके तो, यूं काल हबोला ले रहा।।
स्थाई:- उण घर जाइजे म्हारी नींद, जिण घर राम नाम नहीं भावे।
राम नाम नहीं भावे रे जिण घर, हरी भजन नहीं भावे।।
का जाइजे तू राज द्वारे, का रसियां रस भोगी।
म्हारो लारो छोड़ बावळी, मैं हूँ रमता जोगी।।
भरी सभा में कूड़ो रे बोले, निन्दिया करे पराई।
वो घर हमने तुमको सौंपा, जाजे बिना बुलाई।।
ऊँचा मन्दिर और सखी री, कामणी चँवर ढुलावे।
म्हारे संग काँई लेवे बावळी, राख में दुख पावे।।
केवे भरतरी सुण म्हारी निदरा, यहाँ नहीं तेरा वासा।
राज छोड़ ने लिवी फकीरी, गुरां रे मिलण, हरी रे मिलण,
म्हारे अलख मिलण री आशा।।
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