भाग भला जिन घर संत पधारे
दोहा : संत समागम हरी कथा,
तुलसी दुर्लभ दोय।
सूत दारा अरु लक्ष्मी ,पापी गृह भी होय।।
स्थाई : भाग भला रे जिण घर संत पधारे।
कर किरपा भव सागर तारे।।
आया संतो ने आदर दीजो,
चरण खोल चरणामृत पीजो।।
एड़ा संत हे पर उपकारी,
शरण आया ने लेवे उबारी।।
संत सायब कछु अंतर नाही,
सायब रा घर संता रे माहि।।
संता रे मुख सुं सुनिये वाणी,
सुणतां ही छूटे चौरासी री खाणी।।
कहे कबीर संत भला ही पधारे,
जनम जनम रा कारज सारे।।
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