गूंथ लाई ए मालण सेंवरो....
दोहा: संत हमारा सिरधणी,
मैं संतन की देह ।
रोम-रोम में रम रया,
ज्यूं बादळ में मेह ॥
स्थाई: गूंथ लाई ए मालण सेंवरो,
अपने सतगुरां ताँहि ।,
गूंथ लाई ओ मालण सेंवरा ॥
आज धराऊ दीसे धूंधलो,
इत बिजल्यां चमके।
हरि रा हरिजन दीसे आवता,
डावी आँख फरूखे ॥
आवो ए पाँच सहेलियाँ,
सीवो सायब जी रा चोळा।
केई सीया ने केई सीवणा,
गुरुजी अंग लिपटाया ॥
सरवर पाणी मैं गई,
एक अचरज देख्या ।
एक कमल दूजो फूलड़ो,
वहाँ मेरा भंवर लुभाया ॥
पाणी ने चाली पदमणी,
पग नेवर बाजे।
ठुमक ठुमक पगल्या धरे,
गेरो इन्दर गाजे ॥
लोय लागी ओ हरि नाम री,
सायब जी से साँची।
बाई यमना री ओ वीनती,
सायब मों पर राजी ॥
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