संतो वाली टोगड़ी
दोहा:- संत हमारी आत्मा और मैं संतन की देह।
रोम-रोम में रम रया प्रभु, ज्यूं बादळ में मेह।।
संत मिल्या इतना टले, काल जाल जम चोट।
शीश नमाया गिर पड़े भाई, लख पापों री पोट।।
स्थाई:- कुरमुर कुरमुर पगल्या बाजे, कौन जिनावर जाय।
संतो वाली टोगड़ी, अरे साधों वाली टोगड़ी।
संतो वाली टोगड़ी ने चीतरो लियो जावे, हरामी चीतरो रे,
टोगड़ी मत मारो भोळा साध री रे जियो, राम सा जियो,
पीर सा जियो, जियो रे भाई जियो।।
अरे गायां चाली गोरवे रे राम, भैस्यां पीवण जाय।
संतो वाली टोगड़ी रे, सामी कांखड़ जावे, हरामी चीतरो रे,
टोगड़ी मत मारो भोळा साध री रे जियो, राम सा जियो,
पीर सा जियो, जियो रे भाई जियो।।
हाथ में सोने रो चुटियो, रामदेव धणी आवे।
संतो वाली टोगड़ी ने घेर-घेर ने लावे, हरामी चीतरो रे,
टोगड़ी मत मारो भोळा साध री रे जियो, राम सा जियो,
पीर सा जियो, जियो रे भाई जियो।।
गाँव में जुड़िया में बापजी, जाट रूपजी बोले।
संतो वाली टोगड़ी आ, अमरापुर में बोले, हरामी चीतरो रे,
टोगड़ी मत मारो भोळा साध री रे जियो, राम सा जियो,
पीर सा जियो, जियो रे भाई जियो।।
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