तूने हीरा सो जनम गमायो...
दोहा: मनवा भजे तो राम भज,
कर-कर मन में सोच ।
बार-बार नहीं आवसी,
आ मिनख जनम री मौज ॥
स्थाई: तूने हीरो सो जनम गंवायो,
भजन बिन बावरे ॥
ना तू आयो सत री संगत में,
ना कोई हरी गुण गायो ।
पच-पच मर्यो बैल की नांई,
सोय रयो रे उठ खायो,
भजन बिन बावरे ॥
ओ संसार हाट बणिये की,
सब जग सौदे आयो ।
चतुर माल चौगुणो कीनो,
मूरख मूळ गंवायो,
भजन बिन बावरे ॥
ओ संसार फूल सेमल को,
सूवो देख लुभायो ।
मारी चोंच निकल गई रूई,
सिर धुनि - धुनि पछतायो,
भजन बिन बावरे ॥
ओ संसार माया रो लोभी,
ममता महल चुणायो ।
कहत कबीर सुणो भाई साधो,
हाथ कछु नहीं आयो,
भजन बिन बावरे ॥
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