सौ-सौ शूरमां के बीच....
स्थाई: सौ-सौ शूरमां के बीच में,
अकेलो बजरंगी।
अकेलो बजरंगी,
बाळी लंका रावण की ॥
रामचन्द्र सूं आज्ञा पाकर,
लंका गढ़ में जावे ।
सीताजी रो पतो लगाकर,
वो उत्पात मचावे ॥
मेघनाद जद नागपाश में,
बाँध सभा में लावे ।
रावण के दरबार में बाला,
मंद-मंद मुसकावे ॥
बड़ा-बड़ा ए शूरवीर तब,
रावण ने समझावे ।
शीश काट लो रामदूत रो,
तलवारां चमकावे ॥
जयकारो कर राम नाम रो,
बजरंग बाला बोले ।
सुण ले रावण बात हमारी,
काळ शीश पर डोले ॥
अभिमानी रावण के तब भी,
बात समझ नहीं आई।
लंका नगरी बजरंग जारी,
हरखी सीता माँई ॥
रामदूत बजरंग बली ने,
दास अशोक सुणावे ।
निज चरणां में चाकर राखो,
चरणां में सुख पावे ॥
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