रिमझिम-रिमझिम करती म्हारी......
दोहा:- अष्ट पहर चौसठ घड़ी, सिंवरूँ देवी तोय।
पट मंदिर का खोल दे, मैया दर्शण देवो मोय।।
स्थाई:- रिमझिम-रिमझिम करती म्हारी, मात भवानी आवे रे।
आगे आगे भेरुजी ए, घुंघरिया घमकावे है।
रिमझिम-रिमझिम करती ओ म्हारी।।
जगमग हार गले में चमके, कुण्डल कानो माँये जी।
लाल रूप माथे पर बिन्दियाँ, शोभा वरणी न जाय जी।।
रिमझिम-रिमझिम करती ओ म्हारी।।
छम छम पग में पायल बाजे, बिछियाँ री छवि न्यारी ओ।
तारां जड़ियाचूनड़ी में, शोभा लागे प्यारी ओ।
रिमझिम-रिमझिम करती ओ म्हारी।।
त्रिशूल माता रे हाथ में सोवे, नथणी नाक रे माँहि ओ।
जगमग जोतां जागे हो माता, मोहनी रूप धराई ओ।।
रिमझिम-रिमझिम करती ओ म्हारी।।
सिंह चढ़े ने आवो भवानी, भक्त मण्डल गावे है।
अब तो म्हाने दर्शन देवो, भक्त घणां सुख पावे है।
रिमझिम-रिमझिम करती ओ म्हारी।।
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