जाति रो कारण है नहीं...
दोहा: नीच नीच सब तर गये,
संत चरण लवलीन ।
जाति के अभिमान में,
डूबे कई कुलीन ॥
किस्तूरी मूंगा मोल री,
नी कोई हाट बिकाई
लखपतियों रे लादे कोनी,
नुगरा कद मोलाई ॥
स्थाई: जाति रो कारण है नहीं,
सिंवरे ज्यां रो सांई।
सिंवर- सिंवर निर्भय हुआ,
देव दर्श्या घट माँहि ॥
अठ्ठासी हजार ऋषि तापता,
एके वन रे माँहि ।
भेळी तापती शबरी भीलणी,
उण में अन्तर नाँहि ॥
यज्ञ रचायो पाँचू पांडवां,
हस्तिनापुर माँहि ।
वाल्मीक सरगरो शंख बजायो,
जाति कारण नाँहि ॥
नीची जाति चमार री,
गुरु किया मीरां बाई ।
राणोजी परचो मांगियो,
कुण्ड में गंग दिखाई ॥
रामदास सिंवरे राम ने,
खेड़ापे माँहि ।
राजा प्रजा बादशाह,
सब ही शीश निवाई ॥
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