बोली-बोली रह जा रे जीभड़ली...
स्थाई: बोली बोली रह जा रे जीभड़ली,
वश में रह जा रे जीभड़ली,
तू तो राम नाम नहीं गावे ॥
जिण घर देखे षट् रस भोजन,
वठे लार टपकावे ।
दे चटकारा माल उड़ावे,
जरा शरम नहीं आवे ॥
बिन बतलायां सब सूं बोले,
अगणित जूता खावे ॥
भरी सभा में जावे माजनो,
नीची नाड़ करावे ॥
जिण घर में तू बणे कतरणी,
नित रा रोळ करावे ॥
लक्ष्मी दूर करे उण घर सूं,
सूतां नींद नी आवे ॥
कहे पूनमचंद सुण ए जीभड़ली,
भगत मण्डली गावे ।
हरी नाम रो सुमिरण कर ले,
विरथा जनम गमावे ॥
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