कारगिल...जो है फर्ज अपना वो...
स्थाई: जो है फर्ज अपना वो अदा कीजिये ।
जवानों के वासते दुआ कीजिये ॥
कह दो उन जवानों से, हम तुम्हारे साथ है।
तन मन से सेवा करेंगे, डरने की क्या बात हैं।
दुश्मन को चीर-फाड़ के, सुखा दीजिये ॥
जवानों के वासते दुआ कीजिये ॥
कश्मीर की वादी को, फिर से सजायेंगे।
जरूरत पड़ेगी तो हम, कारगिल भी जाएंगे।
नक्शे से पाक को मिटा दीजिये ॥
जवानों के वासते दुआ कीजिये ॥
मेरे फौजी- मेरी बिखरी हुई जुल्फों का सलाम ।
मंजिल-ए-इश्क से भटकी हुई राहों का सलाम ॥
तूने जो दर्द दिया है वो बसा रखा है।
यानि अंगारों को दामन में छुपा रखा है ॥
तेरी तस्वीर को मैं पूज लिया करती हूँ ।
दिल के मन्दिर में सदा प्यार किया करती हूँ ॥
वापसी की तेरी मांगी है दुआएँ मैंने।
दर्द की गोद में झेली है सजाएं मैंने ॥
मेरे फौजी, हिन्द की अजमत-ए-तौकीर न जाने देना ।
जां चली जाए पर कश्मीर न जाने देना ॥
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