सुण म्हारा मनवा वीर......
दोहा:- मनवा तो पंछी भया, उड़ के चला आकाश।
ऊपर से ही गिर पड़ा, मोह माया के पास।।
स्थाई:- सुण म्हारा मनवा वीर, एड़ी नहीं करणी।
जळ उण्डो संसार, दोरो तिरणो।
माया मोटो जाल गरब नहीं करणो जी, हो जी।।
सुमता कुमता नार दोय पटराणी।
दोनों रो और स्वभाव, संत पहचाणी।।
सुण म्हारा मनवा वीर, एड़ी नहीं करणी।।
आ गई कुमता नार, कुबदा कर गई।
म्हाने नेखियो चौरासी मॉय, जनम डुबा गई।।
सुण म्हारा मनवा वीर, एड़ी नहीं करणी।।
आ गई सुमता नार, सुध बुध दे गई।
म्हाने तारियो चौरासी रे माँय, जनम सुधार गई।।
सुण म्हारा मनवा वीर, एड़ी नहीं करणी।।
किण ने सुनाऊँ गुरु ज्ञान, उठ उठ भागे।
ज्योंरा हिरदा बड़ा कठोर, रंग नहीं लागे।।
सुण म्हारा मनवा वीर, एड़ी नहीं करणी।।
नाभि कमल रे माँय गंगा खळकी,
अड़ा उड़द रे बीच गंगा खळकी।
ए तो केवे संत कबीर भगती करणी ।।
सुण म्हारा मनवा वीर, एड़ी नहीं करणी।।
⚝⚝⚝⚝⚝
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