साधो भाई ! अब चौथा.....
स्थाई:- साधो भाई ! अब चौथा पद पाया।
जनम मरण है शून्य की ज्योति, साधू अमर अजाया।
नाभि कमल से सुरता चाली, सुलटा दम उलटाया।
त्रिकुटी महल की खबर पड़ी जब, आसण अधर जमाया।।
जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति जाणी, तुरिया तार मिलाया।
अन्तर अनुभव ताली लागी, सुर मंडल में समाया।।
चाली सुरता चढ़ी गगन पर, अणहद नाद बजाया।
रुणझुण रुणझुण होवे रणुकारा, तां में सुरत समाया।।
देवी देव वहाँ कुछ नाँही, नहीं धूप नहीं छाया।
रामदास शरणे भजे, बहादुर शाह निरखाया।।
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