दोहा:- गुरु
गोविन्द दोनों खड़े , किसके
लागूँ पाय ।
बलिहारी
गुरुदेवजी , गोविन्द
दियो मिलाय ।।
स्थाई :- बलिहारी
जाऊं म्हारा सतगुरु
ने , किया भरम
सब दूर ।
किया भरम सब दूर मेरा , किया भरम सब दूर ।।
किया भरम सब दूर मेरा , किया भरम सब दूर ।।
प्याला पाया प्रेम का रे , घोल
संजीवन मूल ।
चढ़ी खुमारी प्रेम की रे , मन हो
गया चकनाचूर ।।
कुमता घटी , सुमता
बढ़ी , उर आनन्द
भयो भरपूर ,
राग द्वेष जगत की मोटी , अब मन
भयो मंजूर ।।
विमल होय परकाश लखियो , बिना शशि
बिना सूर ।
मनवो मस्त रेवे अनहद में , सुन के
आनंद तूर ।।
शबद सुण्या गुरुदेवजी रा , जब मुख
पड गई धूड़ ।
धर्मिदास को आय मिल्या है , सतगुरु
श्याम हुजूर ।।
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