चालो दिवाना रा देश में हेली
स्थाई:- चालो दिवाना रा देश में हेली,
नहीं रेवण ने है ठोड़।
सुखमण सेज समेट लो म्हारी हेली,
मन पवना कर एक।
गगन मण्डल सूं डेरा उपड़े म्हारी हेली,
फेर नहीं धरणो शरीर।।
तीन पाँच वटे पहुँचे म्हारी हेली,
नहीं पवना रो प्रवेश।
नहीं ऊगे नहीं आथवें म्हारी हेली,
ऐसा सुराना देश।।
सगुण तू तो वठे नहीं म्हारी हेली,
निर्गुण कयो नहीं जाय।
सगुण निर्गुण रे ऊपरे म्हारी हेली,
अटल अविनाशी रो धाम।।
अठा सूं बिछड्या वठे मिलसां म्हारी हेली,
हँस हँस मिलजो धाम।
केवे कबीरसा धरमीदास ने म्हारी हेली,
सात सत वो ही भरतार।।
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