सीताराम-सीताराम-सीताराम बोल
स्थाई:- सीताराम-सीताराम-सीताराम बोल।
राधेश्याम राधेश्याम राधेश्याम बोल।
काहे प्राणी भटक रहा है, जीवन है अनमोल रे।।
ना कर बन्दे मेरी मेरी, जीवन ख़ाक की ढेरी।
चार दिनों की चाँदनी है, फिर रात अंधेरी।
धर्मराज के आगे तेरी, खुल जाएगी पोल रे।।
माटी के रंगीन खिलौने, माटी में मिल जायेगा।
आज नहीं तो कल यहा पर, कर्मो का फल पायेगा।
हीरा जन्म न फेर मिलेगा, कूड़े में ना रोल रे।।
साथी खाली हाथ गये है, होश तुझे क्यों आये ना।
जोड़ जोड़ भर लिए खजाने, साथ चले इक पाई ना।
भवसागर के अन्दर तेरी, नैया रही है डोल रे।।
जिसको समझे ये जग अपना, वो एक दर्शन मेला।
अन्त काल पछतायेगा, जायेगा तू अकेला।
सुन्दर तन पे दाग लगाया, मैली चादर ओढ़ रे।।
लख चौरासी के चक्कर में, काहे को तू भटक रहा।
भले बुरे कर्मों की फाँसी, जिसपे तू तो लटक रहा।।
साँस साँस पे राम सुमर ले, लागे ना कोई मोल रे।।
ये माया है आनी जानी, ये जग झूठा सपना।
मात पिता बंधु सुत प्यारे, कोई नहीं है अपना।
चार भाई शमशान में जाकर, देंगे अकेला छोड़ रे।।
चला चली का मेला है यहाँ, कोई आये कोई जाये।
राजा रंक यहाँ ना कोई, यह जग एक सराय।
ना जाने किस वक्त कहाँ पर, काल का बाजे ढोल रे।।
मुट्ठी बाँधे आया जगत में हाथ पसारे जायेगा।
कोठी बंगले महल खजाना, यही धरा रह जायेगा।
गहरी नींद में सोने वाले, अब तो आँखे खोल रे।।
एक पतंग की तरह है प्राणी, तेरी अमर कहानी।
पाँच लुटेरे लूट रहे हैं, तेरी यह जिन्दगानी।
आसमान पे उड़ने वाले, कट जायेगी डोर रे।।
पाँच तत्व का बना पिंजरा, जिसका नाम है काया।
पंछी रेन बसेरा करता, देकर साँस किराया।
एक दिन खाली करना पड़ेगा, ये पिंजरा अनमोल रे।।
क्या तू लेय आया जगत में, क्या तू लेकर जायेगा।
दुर्लभ मानुष जनम रे बंदे, फेर नहीं तू पायेगा।
अभिमान में अंधा होकर, काहे मचावे शोर रे।।
बन के हंस तू मोती चुगले, जीवन सफल बना ले।
राम नाम अमृत फल खाकर, अपना आप बचा ले।
लख चौरासी चक्कर में क्यूं, फिरता डाँवा डोल रे।।
माँ के गरभ में लटक रहा था, वादा खूब किया रे।
विषय विकारों की आँधी में, वादा भूल गया रे।
जकड़ जंजीरों से ले जाये, बन के जाये चोर रे।।
देख दिये की भांति तेरी, बाती बुझ जायेगी।
काल तूफ़ां के आगे तेरी, हस्ती मिट जायेगी।।
रहा ना कुछ भी वश में तेरे, प्रभु से नाता जोड़ रे।।
कर्म बही के अन्दर क्या है, हेरा फेरी कर ले।
दुनियाँ भर के खाते चाहे, अपने नाम तू कर ले।
सच्चे मालिक के आगे तू, कुछ न सकेगा बोल रे।।
अब तो नाम सुमरले प्राणी, समय ये बीत रहा है।
ना कोई बंधु सखा है तेरा, ना कोई मीत रहा है।
दूर किनारा सब ने किया है, दिया अकेला छोड़ रे।।
काहे तन पर गर्व करे रे, एक दिन यह जल जायेगा।
जैसे जल से गले रे कागज, ऐसे तू गल जायेगा।
गुरु ज्ञान को गले लगा क्यूं , माया रहा बटोर रे।।
अब तो नेकी कर ले बन्दे, साथ जो तेरे जायेगी।
ये मतलब की दुनियाँ तेरा, कब तक साथ निभायेगी।
कुछ तो धर्म कमा ले मूरख, डायन बुद्धि को छोड़ रे।।
तुझसे वृक्ष भले है बन्दे, देते है जो छाया।
पंछी जिसकी गोद में सोते, फल दे पुण्य कमाया।
सबको सुख देते है भैया, लेते ना कोई मोल रे।।
जीवन तो एक नदियाँ है और, सुख दुःख है दो किनारे।
बहती तेज धारा के अन्दर, तुझको अब जीना रे।
राम नाम की जहाज में चढजा, विरथा मत यूं डोल रे।।
जिस रंग में रामजी राखे, उसी में रहना चाहिये।
जो कुछ दिया है उसने उसमें, शुक्र मनाना चाहिए।
ऊपर देखे दुख घणेरा, नीचे सुख की खोर रे।।
धना जाट था भक्त निराला, पत्थरों को भोग लगाए।
तू खाये तो मैं भी खाऊँ, शाम सवेरे गाये।
एक सहारा तेरा दाता, तेरे बिन न और रे।।
नामदेव था भक्त निराला, राम नाम गुण गाता।
जो कुछ दिया है प्रभु ने उसको, उसी में शुक्र मनाता।
श्वान बन भगवान थे आय, दर्श दिया अनमोल रे।।
दुः शासन ने द्रोपदी की, खींची सभा में साड़ी।
चरणों में बस ध्यान लगाकर, द्रोपदी ये पुकारी।
लाज बचाओ कान्हा मेरी, बार-बार ये बोली रे।।
दीन दुखी का दुख अपना ले, होगी नैया पार रे।
जो इनको तड़फायेगा रे, देंगे नींव उखाड़ रे।
कभी सम्भल ना पायेगा तू, करले बात पर गौर रे।।
दुखिया तेरे पास खड़ा पर, तूने मौज उड़ाई।
भूखा प्यासा पड़ा पड़ौसी, ना उसकी भूख मिटाई।
जीवन खुशियों से भर जाये, उनके आँसू पोंछ रे।।
पाँच तत्व की बनी कोठरिया, एक दिन ये गिर जायेगी।
कागज की रे नैया तेरी, पानी में बह जायेगी।
अकड़ अकड़ पग धरे धरा पर, चलता मूंछ मरोड़ रे।।
जाग मुसाफिर भोर भई क्यूं , सोया चादर तान रे।
काल कुठार है होकर आया, क्यों होता अन्जान रे।
काल बली से बच ना पाये, चाहे लगा ले जोर रे।।
दुर्लभ मानुष जनम को पाना, बच्चो का कोई खेल नहीं।
जनम जनम के शुभ कर्मों का, होता जब तक मेल नहीं।
उत्तम करम कमाई कर ले, छल कपट को छोड़ रे।।
सोने में तो रात गवाई, दिन भर करता पाप रहा।
इसी तरह बर्बाद रे बन्दे, करता अपने आप रहा।
बादल बनकर काल गरजता, छाई घटा घनघोर रे।।
मेरे राम है बड़े दयालु, सब कुछ देते जाते हैं।
छोटे बड़े का भेद न करते, सबकी भूख मिटाते हैं।
दीपक पीले प्रेम का प्याला, राम नाम रस घोल रे।।
बलवन्त तू गुण गाले प्रभु का, मुश्किल हल हो जाएगी।
झोली फैलाकर देख सुरेन्द्र, खुशियों से भर जाएगी।
किसी तरह की कमी न होगी, हो जाएगी मौज रे।।
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मुट्ठी बाँधे आया जगत में हाथ पसारे जायेगा।
कोठी बंगले महल खजाना, यही धरा रह जायेगा।
गहरी नींद में सोने वाले, अब तो आँखे खोल रे।।
एक पतंग की तरह है प्राणी, तेरी अमर कहानी।
पाँच लुटेरे लूट रहे हैं, तेरी यह जिन्दगानी।
आसमान पे उड़ने वाले, कट जायेगी डोर रे।।
पाँच तत्व का बना पिंजरा, जिसका नाम है काया।
पंछी रेन बसेरा करता, देकर साँस किराया।
एक दिन खाली करना पड़ेगा, ये पिंजरा अनमोल रे।।
क्या तू लेय आया जगत में, क्या तू लेकर जायेगा।
दुर्लभ मानुष जनम रे बंदे, फेर नहीं तू पायेगा।
अभिमान में अंधा होकर, काहे मचावे शोर रे।।
बन के हंस तू मोती चुगले, जीवन सफल बना ले।
राम नाम अमृत फल खाकर, अपना आप बचा ले।
लख चौरासी चक्कर में क्यूं, फिरता डाँवा डोल रे।।
माँ के गरभ में लटक रहा था, वादा खूब किया रे।
विषय विकारों की आँधी में, वादा भूल गया रे।
जकड़ जंजीरों से ले जाये, बन के जाये चोर रे।।
देख दिये की भांति तेरी, बाती बुझ जायेगी।
काल तूफ़ां के आगे तेरी, हस्ती मिट जायेगी।।
रहा ना कुछ भी वश में तेरे, प्रभु से नाता जोड़ रे।।
कर्म बही के अन्दर क्या है, हेरा फेरी कर ले।
दुनियाँ भर के खाते चाहे, अपने नाम तू कर ले।
सच्चे मालिक के आगे तू, कुछ न सकेगा बोल रे।।
अब तो नाम सुमरले प्राणी, समय ये बीत रहा है।
ना कोई बंधु सखा है तेरा, ना कोई मीत रहा है।
दूर किनारा सब ने किया है, दिया अकेला छोड़ रे।।
काहे तन पर गर्व करे रे, एक दिन यह जल जायेगा।
जैसे जल से गले रे कागज, ऐसे तू गल जायेगा।
गुरु ज्ञान को गले लगा क्यूं , माया रहा बटोर रे।।
अब तो नेकी कर ले बन्दे, साथ जो तेरे जायेगी।
ये मतलब की दुनियाँ तेरा, कब तक साथ निभायेगी।
कुछ तो धर्म कमा ले मूरख, डायन बुद्धि को छोड़ रे।।
तुझसे वृक्ष भले है बन्दे, देते है जो छाया।
पंछी जिसकी गोद में सोते, फल दे पुण्य कमाया।
सबको सुख देते है भैया, लेते ना कोई मोल रे।।
जीवन तो एक नदियाँ है और, सुख दुःख है दो किनारे।
बहती तेज धारा के अन्दर, तुझको अब जीना रे।
राम नाम की जहाज में चढजा, विरथा मत यूं डोल रे।।
जिस रंग में रामजी राखे, उसी में रहना चाहिये।
जो कुछ दिया है उसने उसमें, शुक्र मनाना चाहिए।
ऊपर देखे दुख घणेरा, नीचे सुख की खोर रे।।
धना जाट था भक्त निराला, पत्थरों को भोग लगाए।
तू खाये तो मैं भी खाऊँ, शाम सवेरे गाये।
एक सहारा तेरा दाता, तेरे बिन न और रे।।
नामदेव था भक्त निराला, राम नाम गुण गाता।
जो कुछ दिया है प्रभु ने उसको, उसी में शुक्र मनाता।
श्वान बन भगवान थे आय, दर्श दिया अनमोल रे।।
दुः शासन ने द्रोपदी की, खींची सभा में साड़ी।
चरणों में बस ध्यान लगाकर, द्रोपदी ये पुकारी।
लाज बचाओ कान्हा मेरी, बार-बार ये बोली रे।।
दीन दुखी का दुख अपना ले, होगी नैया पार रे।
जो इनको तड़फायेगा रे, देंगे नींव उखाड़ रे।
कभी सम्भल ना पायेगा तू, करले बात पर गौर रे।।
दुखिया तेरे पास खड़ा पर, तूने मौज उड़ाई।
भूखा प्यासा पड़ा पड़ौसी, ना उसकी भूख मिटाई।
जीवन खुशियों से भर जाये, उनके आँसू पोंछ रे।।
पाँच तत्व की बनी कोठरिया, एक दिन ये गिर जायेगी।
कागज की रे नैया तेरी, पानी में बह जायेगी।
अकड़ अकड़ पग धरे धरा पर, चलता मूंछ मरोड़ रे।।
जाग मुसाफिर भोर भई क्यूं , सोया चादर तान रे।
काल कुठार है होकर आया, क्यों होता अन्जान रे।
काल बली से बच ना पाये, चाहे लगा ले जोर रे।।
दुर्लभ मानुष जनम को पाना, बच्चो का कोई खेल नहीं।
जनम जनम के शुभ कर्मों का, होता जब तक मेल नहीं।
उत्तम करम कमाई कर ले, छल कपट को छोड़ रे।।
सोने में तो रात गवाई, दिन भर करता पाप रहा।
इसी तरह बर्बाद रे बन्दे, करता अपने आप रहा।
बादल बनकर काल गरजता, छाई घटा घनघोर रे।।
मेरे राम है बड़े दयालु, सब कुछ देते जाते हैं।
छोटे बड़े का भेद न करते, सबकी भूख मिटाते हैं।
दीपक पीले प्रेम का प्याला, राम नाम रस घोल रे।।
बलवन्त तू गुण गाले प्रभु का, मुश्किल हल हो जाएगी।
झोली फैलाकर देख सुरेन्द्र, खुशियों से भर जाएगी।
किसी तरह की कमी न होगी, हो जाएगी मौज रे।।
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