नुगरा मत रहना जी
दोहा : नुगरा नर
तो मति मिलो
ने पापी
मिलो रे हजार
क्योकि
एक नुगरा रे शीश पर
लख
पापियों रो भार
स्थाई : नर रे नारण री देह बनाई
अरे
नुगरा कोई मत रहना जी
नुगरा
मिनक तो पशु बराबर
उन रा
संग नहीं करना जी
राम भजन
में अल्प मेरा हंसा
इन जग
में जीवना थोड़ा रे हा...
अरे आड़ा वरन री गायो गोडाऊ
एक बार
तन में लेवना जी
मन ने
मुक्ते ने माखन लेना
बर्तन उजला
रखना जी
राम भजन
में अल्प मेरा हंसा
इन जग
में जीवना थोड़ा रे हा...
अरे अगलो आवे अगल सरूपी
अगल
सरूपी रेवना जी
थोड़ो आगे
अजुरो ही रेना
सुन सुन
वचन लेवना जी
राम भजन
में अल्प मेरा हंसा
इन जग
में जीवना थोड़ा रे हा...
काशी नगर में रेवता कबीर सा
वे कोरा
कागा भनता जी
सारा
संसारिया में धरम दिलायो
वे
निरगुण माला फेरता जी
राम भजन
में अल्प मेरा हंसा
इन जग
में जीवना थोड़ा रे हा...
इन संसारिया में आवणो जावणो
बैर किसी
से मत रखना जी
केवे
कमाल कबीर सा री छेली
अरे फेर
जनम नहीं लेवणा जी
राम भजन
में अल्प मेरा हंसा
इन जग
में जीवना थोड़ा रे हा...
नर रे नारण री देह बनाई
अरे
नुगरा कोई मत रहना जी
नुगरा
मिनक तो पशु बराबर
उन रा
संग नहीं करना जी
राम भजन
में अल्प मेरा हंसा
इन जग
में जीवना थोड़ा रे हा...
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