Sant Sada Sukh Dhara Bhajan संत सदा सुख धारा


संत सदा सुख धारा.........

स्थाई :- संत सदा सुख धारा साधु रे भाई ! संत सदा सुख धारा हो जी।
उलटी धारा जो नर चाले, उलट मरे वे गिवारां, साधु रे भाई संत सदा सुख धारा हो जी।।

मोटा खाण्डा ने मोटा ना कहिये, नीच खाण्डा री धारा, हो जी। 
मन अभिमानी रो शीश काटियो, गुरु मुख ज्ञान री धारा,
साधु रे भाई ,संत सदा सुख धारा हो जी।।

रण मैदान में शूरा नर खेले, हाथ लिया तलवारां, हो जी। 
दाव गुरूजी रो जो नर सीखे, माथा लावे नरां रा,
साधु रे भाई ,संत सदा सुख धारा हो जी।।




सतगुरु शरणे जो नर जावे, कदे न ले अवतारा, हो जी। 
पाँच पचीस ने वे नर जीते, नाम सूं दीखे न्यारा,
साधु रे भाई ,संत सदा सुख धारा हो जी।।

सतगुरु म्हाने पूरा मिलिया, खोल्या भरम रा भारा, हो जी। 
भीमपुरी भाण भीतर उग्यो, आठो पहर उजियारा,
साधु रे भाई ,संत सदा सुख धारा हो जी।।
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