Satguru Kripa Kini Bhajan सतगुरु किरपा कीनी भजन


सतगुरु किरपा कीनी.........

दोहा :- कोटिक चन्दा उगहि, सूरज कोटि हजार। 
            तिमिर तो नाशे नहीं, गुरु बिन घोर अंधार।।

स्थाई :- सतगुरु किरपा कीनी, म्हाने जड़ी भजन री दीनी। 
सुतोडी सुरता जागी, आ जाग भजन में लागी।।

मैं भूल भरम में फिरतो, गुरु कियो भजन में मिलतो। 
म्हारा भाग पुरबला जागा, और सत शब्दो में लागा।।




मैं गुरु सेवना कीनी, म्हाने सुमिरण कूंची दीनी। 
जद खुलिया भरम रा ताला, म्हारे हिरदे भया उजियाला।।

मैं राम भजन में राजी, म्हारी हरी राखेला बाजी। 
मैं तो गुरूसा रो शरणे लीनो, और प्यालो प्रेम रो पीनो।।

झिलमिल झलकी ज्योति, निरख लिया निज मोती। 
दादू भजे बह जातो, म्हने थाम लियो निज हाथों।।
                           ✽✽✽✽✽


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