स्थाई:- एक पारब्रह्म रूप चतुर्धर, लीला कीनी रे अपार।
प्रणाम गुरुदेवजी ने बारम्बार, प्रणाम गुरुदेवजी ने बारम्बार।
बारम बार मेरा बारम्बार, प्रणाम गुरुदेवजी ने बारम्बार।
प्रणाम गुरुदेवजी ने बारम्बार, प्रणाम गुरुदेवजी ने बारम्बार।।
ब्रह्मा रे रूप धर वेद
प्रकट कर, रचियो सकल संसार।
प्रणाम गुरुदेवजी ने
बारम्बार, प्रणाम गुरुदेवजी ने बारम्बार।।
विष्णु रे रूप धर विश्व रो
पालक, धर्म हेतु अवतार।
प्रणाम गुरुदेवजी ने
बारम्बार, प्रणाम गुरुदेवजी ने बारम्बार।।
रूद्र रूप धर दुष्ट रुलावण, पल में करते संहार।
प्रणाम गुरुदेवजी ने
बारम्बार, प्रणाम गुरुदेवजी ने बारम्बार।।
अचलूराम जीव मुक्ति रे कारण, गुरुमूर्ति लीजो रे धार।
प्रणाम गुरुदेवजी ने
बारम्बार, प्रणाम गुरुदेवजी ने बारम्बार।।
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