Rang Lago Ji Mhane Kodh Lago Bhajan
दोहा:- धिन धिन धोरा धरती ने, पड़ियो समन्द में सीर।
कलजुग में परचा दिया, थाने रंग हो रामापीर।।
तटके ताला टूटीया, झटके पड़ी आ जंजीर।
रतनो हाजिर होवियो, थाने रंग हो रामापीर।।
स्थाई:- रंग लागो जी म्हाने कोड लागो रे,
म्हाने जाणो रे रूणीचा वाले धाम, म्हारा मनवा रंग लागो।।
भादरवे री बीज चानणी।
कोई प्रकट्या दीनदयाल, म्हारा मनवा रंग लागो।।
थोथी थलियाँ में बणियो देवरो।
कोई धजा रे फरुखे आसमान, म्हारा मनवा रंग लागो।।
मेवा मिठाई चढ़े चूरमो रे।
बाबा चढ़े चढ़े लीलड़िया नारेळ, म्हारा मनवा रंग लागो।।
दूर देशां रा आवे जातरी।
थारो मेलो रे भरीजे भरपूर जी, म्हारा मनवा रंग लागो।।
कुशल रतन री वीनती रे।
थारा प्रकाश माली जश गाय, म्हारा मनवा रंग लागो।।
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