थाळी भर ने लाई खींचड़ो.....
Thali Bhar Kar Lyayi Re Khichdo
स्थाई: थाळी भर ने लाई खींचड़ो,
ऊपर घी की वाटकी ।
जीमो म्हारा श्याम धणी,
जीमावे बेटी जाट की॥
बाबो म्हारो गाँव गयो है,
ना जाणे कद आवेला ।
उण रे भरोसे बैठो रयो तो,
भूखो ही मर जावेला ।
आज जीमाऊँ थांने खींचड़ो,
घाट राबड़ी काल की॥
बार-बार मन्दिर ने जड़ती,
बार-बार मैं खोलती ।
कईयां कोनी जीमो मोहन,
करड़ी-करड़ी बोलती ।
थे जीमो तो मैं जीमूंला,
मानूं ना कोई लाट की ॥
परदो भूल गई सांवरिया,
परदो फेर लगायो जी।
धाबळिया रे ओळे बैठ ने,
श्याम खींचड़ो खायो जी ।
भोळा भाळा भगतां सूं,
सांवरियो कीनी नाटकी ॥
भक्ति हो तो करमा जैसी,
सांवरियो घर आवेला ।
भक्त मण्डल प्रभु चरणां माँहि,
हरख हरख जस गावेला।
साँचो प्रेम प्रभु से हो तो,
मूरत बोले काठ की ॥
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