तोड़ी कोनी जावे रे.....
स्थाई:- तोड़ी कोनी जावे रे मोहन सूं प्रीतड़ली।
मोहन सूं प्रीतड़ली, गिरधर सूं प्रीतड़ली।।
सरवर पाणी मैं गई म्हारे, सिर पर गागरल्यां।
सामी मिलियो कँवर क़ानूड़ो, आ गई लाजड़ल्यां।।
वृंदावन री कुंज गलिन में, बाजे बांसुरियां।
बांसुरी रा लग्या पेरवां, उड़ गई नींदड़ल्यां।।
आमी सामी महल मालिया, लग रही आंखड़ल्यां।
दर्शन कैसे पाऊं सांवरा, आड़ी भीतड़ल्यां।।
मोहन आया पांवणा, म्हें रांधूं खींचड़ल्यां।
मीरां कहे प्रभु गिरधर नागर, आदु प्रीतड़ल्यां।।
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