फकीरी जीवत धूके मसाण.....
स्थाई:- कर लेना निज छाण फकीरी, जीवत धूके रे मसाण।।
छह दर्शण, छतीसों पाखण्ड, लग रहीं खेंचाताण।
उलट पड़े उण युद्ध माँहि, जद पड़ेला थारी जाण।।
सिर को काट लड़े कोई शूरा, धड़ सूं जूंझे आण।
आठों पहर सोलमां गावे, जद पहुँचे परियाण।।
अगम निगम दो वाणी जग में, उभी करे बखाण।
राजा परजा दर्शन आवे, धिन जोगी थारे थाण।।
अनन्त कोटि साधु जन तापे, नव नाथन को जाण।
शूरा ताप सहे इण घण री, कायर तज दे प्राण।।
ब्रह्म मिलन का पटा लिखाया, दिल बिच ऊगा भाण।
' हरिराम वैरागी ' बोले, सतगुरु मिल्या सुजाण।।
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