पपइया, पिव-पिव बोल म्हारा वीर....
स्थाई: थूं जाणे म्हारे पिवजी री बातां,
के कोयल के कीर,
पपइया, पिव- पिव बोल म्हारा वीर ॥
पिवजी बसत है पर भूमि में,
चित्त मन धरे नहीं धीर ।
विरह लगाय पाय गया प्यालो,
गया कलेजो चीर,
पपइया, पिव-पिव बोल म्हारा वीर ॥
गळ गयो माँस रह गई हड्डियाँ,
दुखी बड़ो शरीर ।
दिन नहीं चैन रैन नहीं निदरा,
लागा शब्दों रा तीर,
पपइया, पिव-पिव बोल म्हारा वीर ॥
सुआ रे लाय दे संदेशो,
ब्रेहणी री विगत शरीर ।
कोकिला एक काम कर मेरो,
हो जाए समदां में सीर,
पपइया, पिव- पिव बोल म्हारा वीर ॥
मिळ गया पीव जीव सुख पाया,
सुखी भयो शरीर ।
कहे कमाली हाल विरह रा,
मिळिया संत कबीर,
पपइया, पिव-पिव बोल म्हारा वीर ॥
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