हरि भजन रे काज बणायो, मोहन...
स्थाई: पाँच तत्त्व और तीन गुणां से,
रचियो मन्दिरियो ।
रचियो मन्दिर बैठो अंदर,
श्याम सुन्दरियो ।
हरि भजवा रे काज बणायो,
मोहन मन्दिरियो ।
राम भजन रे काज बणायो,
ओ तन देवळियो ॥
नव दरवाजा खुला पड़ा है,
दशमों बंद रयो ।
दशवां में बल्ब लगाकर देखो,
आणंद कंद रयो ॥
बिना जोत प्रकाश बिना,
सूरज चंद रयो ।
प्रकट देव दरशे नहीं रे,
यूं जग अंध रयो ॥
राम नाम से वे मुक्त प्राणी,
मोह में फंद रयो ।
भवानीनाथ सतगुरुजी शरणे,
चरणे चित्त धर्यो ॥
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