प्रभु मैं हूँ ओगणगारो...
स्थाई: प्रभु मैं हूँ ओगणगारो,
मोहे अब पार उतारो ॥
अच्छो बुरो हूँ खरो निकम्मो,
पूत कपूत हूँ थांरो ।
पापां रा श्रापां रे आगे,
वश चाले नहीं म्हारो ॥
मन तो मरजी ऊपर चाले,
समझा-समझा हार्यो ।
ओ म्हारी तो एक नी माने,
जीवन थकियो सारो ॥
स्वार्थ रा साथी है जग में,
यो दुनियाँ रो धारो ।
ओ मन किण रे वचन बंध ग्यो,
ऊपर मोटो भारो ॥
इण मन रे कर्मों ने देख्यां,
मत ना नरकां डारो ।
भैरव तो भोळो है भगवन,
चौरासी रे तारो ॥
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