ओढ़ भरम रो भाखलियो
स्थाई:- नर गाफल कैसे सूतो रे, ओढ भरम रो भाखलियो।
मालिक रा गुण गावत-गावत, ऐड़ो काँहि आयो थाकलियो।।
सत री संगत में कबहुँ न बैठे, मूरख मन में नी तेठे,
ज्यूं ज्यूं पाप घणेरा चेंठे,
थूं कयो मानतो नाँय रे, थूं जहर हळाहळ चाख लियो।।
मतलब काज दशों दिश भटके, उठ परभाते जावे झटके,
पुण री वेला पैसो अटके,
सांझ पड्यां सो जाय रे, थूं फाड़ मुंडे रो बाकलियो।।
कूड़ कपट में राजी बाजी, हँस हँस बात बणावे ताजी,
जनम दियो थारी जरणी लाजी,
मानखो जनम थें खोय दियो रे, घोड़ो नरक में हाँक लियो।।
राम बिना थारो कोई नी साथी, सींग पूंछ कोंधे में टांकी,
एक बात थारे रहगी बाकी,
नाथ नी थारे नीक में न नहीं तो, खूंटे नखा दूं खाखलियो।।
कहे दानाराम सुणो मेरे प्यारे,मालिक हिसाब लेवे न्यारे न्यारे,
होठ कंठ चिप जासी थारे।
सायब रे थूं सन्मुख वेला, कठे बतावेला नाकलियो।।
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