Aapri Bhakti Ro Data Goon Kahi Bhajan आप री भगती रो दाता गुण काँहि भजन

आपरी भगती रो दाता गुण काँहि


स्थाई : आपरी भगती रो दाता गुण काँहि, 
जग जन एक समाना ।
के तो निज भक्ति नहीं, 
के झूठा ही बाना ॥

मान सरोवर रा गुण काँहि, 
जठे हंसा दुखियारा।
के तो निज सरवर नहीं, 
के बुगला भेख धारा ॥

सतगुरु भेट्यां रा गुण काँहि, 
सुधरे नहीं चेला।
के तो निज सतगुरु नहीं, 
के मन नहीं झेला ॥

पारस भेट्यां रा गुण काँहि, 
पलटे नहीं लोहा ।
के तो निज पारस नहीं, 
के रह गया बिछेवा ॥

कल्पवृक्ष रो गुण काँहि, 
मन री कळपना नहीं जाई ।
के तो निज कल्पवृक्ष नहीं, 
के मन कुटळाई ॥

पुष्प वास रो गुण काँहि, 
अलि लेत नहीं वासा ।
के तो निज पुष्पवास नहीं, 
के भंवर उदासा ॥

दानपति रो गुण काँहि, 
मनवर दान नहीं दीना ।
केवे कबीरसा धर्मीदास ने, 
कछु कर्मों रा हीना ॥
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