लिख दिया विधाता लेख.....
दोहा:- सायब से सब होत है, बन्दे से कुछ नाँय।
पर्वत से राई करे, राई परवत माँय।।
स्थाई:- कछु राई घटे और टिल नहीं बढ़ने का।
लिख दिया विधाता, लेख नहीं टलने का।।
एक रथ पालकी, घोड़े पर चढ़ता है।
कोई सिर पर बोझा, लिया-लिया फिरता है।
एक पाट पीताम्बर, वस्र पहने रहता है।
कोई गरीब बेचारा, पड़े ठण्ड मरता है।
एक वेमाता के हाथ है, अंक लिखने का।।
एक लखपति सेठ, लाखों का बिणज करता है।
पड़ जावे टोटा, इधर उधर फिरता है।
एक चाँद सूरज, अधर जोत तपता है।
पड़ जावे फीका, जब ग्रहण पूर्ण लगता है।
कर्मों के भाव से ही, आदर मिलने का।।
एक पुरी अयोध्या, बाग़ बड़ा गुलजारी।
दशरथ के घर में, रामचन्द्र अवतारी।
एक राम लक्ष्मण, संग में सीता नारी।
पिता वचन सुन, वन की करी तैयारी।
रावण ने खोय दी, सोने सरीखी गढ़ लंका।।
एक हंसराज, समन्द बीच रहता है।
पुरबला पुण्य से, मोती चुग खाता है।
कीड़ी को कण, हाथी को मण देता है।
टुकनगिरी का, ख्याल अधर चलता है।
एक दिया जूंण में, सच्चा नाम ईश्वर का।।
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