जरा धीरे-धीरे गाड़ी हाँको रे.....
दोहा:- सांझ पड़ी दिन आथम्यो, तो चकवी दीनो रोय।
चल चकवा उण देश में, जहाँ रेण दिवस ना होय।।
स्थाई:- जरा धीरे-धीरे गाड़ी हाँको रे, काया नगर रा राम।
काया नगर रा राम, ए गाड़ी वाला राम।।
गाड़ी म्हारी रंग रंगीली, पहिया लाल गुलाल।
हाकण वालो छैल-छबीलो, अरे बैठण वालो राम।।
गाड़ी उबी रेत में, मंजिल बड़ी है दूर।
धरमी-धरमी पार उतर गया, अरे पापी चकनाचूर।।
देश-देश सूं वैघ बुलाया, लाया जड़ी और बूटी।
जड़ी-बूटी म्हारे काम नी आई, म्हारे राम रे घर री टूटी।।
चार जणां मिल मतो उपायो, बाँधी काठ री डोली।
जाय उतारी मसाणां में, अरे फूंक दीवी ज्यूं होली।।
घर की तिरिया यूं उठ बोली, म्हारी जोड़ी कुण तोड़ी।
कहे कबीर सुण भाई साधु, जिण जोड़ी उण तोड़ी।।
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