मात-पिता सूं दगो करेला.....
दोहा:- मात-पिता परमात्मा, पति सेवा गुरु ज्ञान।
इनसे हिलमिल चालिए, वो नर चतुर सुजान।।
मात-पिता री चाकरी, कर ले चित लगाय।
चार धाम चरणां मिले, जनम मरण मिट जाय।।
स्थाई:- मात-पिता सूं दगो करेला, चार जन्म दुःख पावे।
लाख चौरासी फिरे भटकतो, सीधो नरक में जावे रे,
मनवा, इतरो क्यूं इतरावे।।
पेला रे जनम में बणे बलधियो, पकड़ तेली घर लावे।
आँख्या रे थारे पाटो बांध ने, उल्टो चक्कर चलावे रे,
मनवा, इतरो क्यूं इतरावे।।
दूजा जनम में बणेला बन्दरियो, पकड़ मदारी घर लावे।
पाप नहीं ओ एक जनम रो, सात जनम दुख पावे रे,
मनवा, इतरो क्यूं इतरावे।।
तीजा जनम में बणेला बकरियो, पकड़ कसाई घर लावे,
उल्टो तेर छुरी फेरेला, बें बें कर मर जावे रे,
मनवा, इतरो क्यूं इतरावे।।
चौथा रे जनम में बणेला गधेड़ो, पकड़ कुम्हार घर लावे।
बिन तोल्यां माथे बोझ धरेला, डण्डा चार लगावे रे,
मनवा, इतरो क्यूं इतरावे।।
बंगलो बणायो तू दौलत कमाई, संचे लोक लुगाई।
माता-पिता बीमारी भुगते, कुण लावे वां रे दवाई।
एड़ी मत ना कर रे भाई, मात-पिता दुःख पावे,
मनवा, इतरो क्यूं इतरावे।।
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