सइयां ! सतगुरु भल आया ए.....
दोहा:- धनगुरु करतारामजी, तुम री फूंक अथाय।
नौ दरवाजा आणंद सदाई नवला, सतगुरु सेवा माँय।।
स्थाई:- सइयां ! सतगुरु भल आया ए।
गर हर गाजियो इण शहर में, आनन्द बरसाया ए।।
दर्द मिटायो इण जीव रो, तन री तपत बुझासा।
जुगन-जुगन रा जीव अलुझिया, सतगुरु सुलझासा।।
भवसागर रा भय मिटाया, जम जाल हटाया।
कर किरपा गुरुदेव जी, सत शब्द सुणाया।।
जड़ पूजा सब छोड़ ने, सतगुरु फ़रमाया।
पारस लागो इण अंग रे, कंचन कर थाया।।
रैण अंधारो सारो मेट ने, सपना सर्व हटाया।
कहे नवलो किरपा भई, दिन रैण जगाया।।
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