आप थकां किणने ध्यावूं
दोहा:- हरजी री सुण वीनती, आईजो रामापीर।
परचो मांगे राजाजी रे, किण विध आवे धीर।।
स्थाई:- अरे बापजी ओ, आप थकां किणने ध्यावूं जी।
किनारी पोल्याँ आगे करुँ वीणती, किणने दुखडो सुणाऊँ।
ओ बापजी ओ, आप थकां किणने ध्यावूं , जी।।
पर बिना पाँख पखेरू कियाँ उड़सी, कियाँ में बच पाऊँ जी।
जल बिना मछियाँ, किण विध जीसी, जल कठा सूं लाऊँ।
ओ रामदेवजी, आप थकां किणने ध्यावूं , जी।।
राजा विजयसिंह परचो मांगे बाबा, परचो कियाँ में दिखाऊँ जी।
आणो वे तो आजा रामदे, जहर खाय मर जाऊँ।
ओ बापजी ओ, आप थकां किणने ध्यावूं , जी।।
नौ मण घास घोड़े आगे राल्यो बाबा, घोड़े ने कियाँ रे चराऊँ जी।
राजा विजयसिंह यूं फरमावे बाबा, घाणी में घाल पीलाऊँ।
ओ बापजी ओ, आप थकां किणने ध्यावूं , जी।।
लीलो हीस करि गढ़ पोल्याँ दाता, गढ़ ने दियो है धुजाई जी।
हाकम हंजारी माफ़ी मांगे, जनम जनम गुण गाऊँ।
ओ रामदेवजी, आप थकां किणने ध्यावूं , जी।।
राजा विजयसिंह यूं फरमावे बाबा, जोधाणे में देवरो चुणाऊँ जी।
पिण्ड रिजधानी हरजी थाने दे दूं , ताम्बा पत्र कराऊँ।
ओ बापजी ओ, आप थकां किणने ध्यावूं , जी।।
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