अब कैसे होवे जग में.....
स्थाई:- अब कैसे होवे जग में जीवणो म्हारी हेली, लागा शब्द रा तीर।।
घर गयां कामण म्हारी हेली, भाई गिने नहीं भीर।
ज्यां रा मुरसद घरे नहीं म्हारी हेली, नैणां में बरसे नीर।।
कर जोड्या कामण खड़ी म्हारी हेली, ओढ़ण बहुरंग चीर।
सतगुरु मिलिया म्हाने सागड़ी म्हारी हेली, आछी बंधाई धीर।।
काँई रे बादलिया री छांवली म्हारी हेली, काँई नुगरां री प्रीत।
काँई नाडोल्यां में नावणो म्हारी हेली, पड़ियो समद में सीर।।
हर दरियाव अथंग जल भरियो हेली, हंसा चुगे नित हीर।
शबद भलाऊ संग ले चलो म्हारी हेली, कह गया दास कबीर।।
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